हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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सोमवार, 4 जून 2012

परवाह..

परवाह करो तुम केवल उसकी ,
जिसको हो परवाह तुम्हारी ।
उसके लिए क्यों व्यर्थ तडपना ,
जो समझे नहीं परवाह तुम्हारी ।

बिन मांगे जो मिल जाए किसी को ,
वो माटी मोल हो जाता है ।
यही है जग की रीति सदा से ,
मुझे देर से समझ में आता है ।

भले सर्वस्य दान दे दो कुपात्र को ,
पर पुण्य ना अर्जित हो पाता है ।
जो अपना है वो जन्मजात अपना है ,
गैरो से रक्त सम्बन्ध कहाँ बन पाता है ।

कभी धोखा देते कुछ अपने भी ,
गैरो का साथ काम तब आता है ।
यहाँ अपने पराये का अंतर ,
जीवन भर चलता जाता है ।

जो समझे ना अन्तर्वासना औरो की ,
वो निज भोलेपन से मूर्ख बन जाता है ।

धोखा दिया मुझे अपनो ने ,
इसी दुःख में जलता जाता है ।



सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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